Login
Users
Social Media
Post in Website
22 December
Ability is nothing without opportunity.
Home
|
Register
|
Blog
|
Photo Gallery
|
Video Gallery
|
In Media
|
Life Sketch
|
Gallery
|
Directory
|
Visit Report
Saini Database
Know More
Senior Officers
Constructions
Political
Business Houses
Award Winners
Retail/ Wholesaler / Dealers
Social Organization
Education
Medical Facility
NewsPaper & Magazine
Directory/Professional Services
In Job
Hotels/ Tour / Transportation
Website
Social Network
सावित्री बाई फुले
जीवन परिचय
फोटो गैलरी
जन्म तिथि
03.01.1831
पुण्यतिथि
10.03.1897
महात्मा ज्योति बा फुले के क्रांतिकारी और आंदोलनकारी जीवन में उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई ने न केवल हर कदम पर उनके साथ अपने सर्वस्व की आहुति दी बल्कि वे उनके विचारों को आत्मसात कर आगे बढ़ाने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्षरत रही। आधुनिक भारत की सामाजिक क्रांति के इतिहास में सावित्री बाई का भी बराबरी का स्थान है। महात्मा फुले ने उनके योगदान के सम्बन्ध में कहा है-अपने जीवन में जो कुछ भी मैं कर सका, इसके लिए मेरी पत्नी कारणीभूत है। ज्योति बा सावित्री बाई की प्रेरणा थे, तो सावित्री बाई ज्योति बा की प्रेरणा थी। महाराष्ट्र के सतारा जिले के नॉय नामक छोटे से गांव में सावित्री बाई का 3 जनवरी 1831 में जन्म हुआ। ज्योति बा से उनका विवाह 1840 में हुआ। सावित्री बाई की शिक्षा की शुरुआत विवाह के बाद पति के घर में हुई। उनको पढ़ाने लिखाने का कार्य ज्योति बा ने स्वयं किया।
महात्मा फुले के आंदोलन में सावित्री बाई का सबसे महत्वपूर्ण योगदान तब हुआ, जब उन्होंने अपने पति के निधन के बाद ‘‘सत्य शोधक समाज’’ का 1891 से लेकर 1897 तक सफल नेतृत्व किया। सावित्री बाई प्रतिभा सम्पन्न लेखिका एवं कवियित्री थीं। उनका पहला कविता संग्रह ‘‘काव्य फुले’’ नाम से 1854 मे प्रकाशित हुआ। ‘‘शूद्रों का दुख’’ कविता में वे कहती हैं-पिछड़ों , दलितों एवं महिलाओं की उन्नति का एक मात्र उपाय शिक्षा है। उठो, बंधुओं जागृत हो उठो, परम्परा की गुलामी नष्ट करने के लिए उठो, शिक्षा के लिए उठो। ‘‘अज्ञान’’ नामक कविता में सावित्री बाई कहती हैं-केवल एक ही शत्रु है अपना, मिलकर निकाल देंगे, उसे बाहर, उसके सिवा कोई शत्रु ही नहीं, बताती हँू उस दुष्ट का नाम, सुनो ठीक से आप सभी, वह तो है अज्ञान।
सावित्री बाई का महत्व केवल महात्मा फुले की पत्नि के रूप में ही नहीं है। आधुनिक भारत की सामाजिक शैक्षिणिक क्रांति के इतिहास में उनका अपना अनोखा और अग्रणी स्थान है। वे देश की पहली अध्यापिका तो हैं ही, उसके साथ सार्वजनिक जीवन को अंगीकार करने वाली 19वीं सदी की पहली भारतीय स्त्री भी हैं। सावित्री बाई का जीवन एक ऐसी मशाल है जिसके आलोक में भारतीय नारी को विधा प्राप्ति का अधिकार मिला, पहली बार वह सम्मान के साथ जीवन जीना सीखी और स्वतंत्र बनकर खुली हवा में पुरुषों के समान सम्मान पाने लगी। नारी जगत सदैव उनका ऋणी बना रहेगा। सन् 1897 में महाराष्ट्र में सब जगह हैजे की बीमारी फैली थी। हजारों लोग मर रहे थे, सैंकड़ों परिवार बरबाद हो रहे थे। ‘‘सत्यशोधक समाज’’ ने लोगों की सहायता के लिए अनेक केन्द्रों की स्थापना की थी। सावित्री बाई के नेतृत्व में यह सेवा कार्य चल रहा था। हैजे से रोगग्रस्त लोगों को सावित्री बाई स्वयं अपने दत्तक पुत्र डॉ. यशवन्त के दवाखाने ले जाती थी। उसके कारण सावित्री बाई को भी हैजे की बीमारी ने पकड़ लिया और 10 मार्च,1897 को उनका देहावसान हो गया।
ज्योति बा के साथ सावित्री बाई ने भी दुःख मुसीबत उठाई। लोगों के अपशब्द सुने, उनके पत्थर, गोबर और निन्दा सहन की। यहां तक कि परिजनों की प्रताड़ना भी सही। लेकिन संकट उन्हें कभी तोड़ नहीं पाए। हर समस्या और बाधा के बाद वे और मजबूत हो कर आगे बढ़ी। मानवता, समानता और समता का उनका आंदोलन मृत्युपर्यन्त जारी रहा।
ऐसी महान् आत्माओं को हमारा शत् शत् नमन। आइये, ऐसे महामानवों के अधूरे कार्यों, संकल्पों और सपनों का पूरा करने की, अब, हम सब मिलकर कोशिश करते हैं।
Source : http://www.mjprs.org